माया कैलेंडर के
मुताबिक ये धरती वर्ष २०१२ दिसम्बर को ख़त्म हो जाएगी| जब यह खबर मेरे कानो तक पड़ी
तो मेरे पैरो के निचे से मानो जमींन ही खिसक हो, मुझे ऐसा लगा की ये भी कोई समय है
धरती के ख़त्म होने का मैंने तो अभी ठीक तरह से दुनिया भी नहीं देखा और दुनिया के
ख़त्म होने की बात भी आ गई| कितने सपने संजोये
थे, मैंने क्या सब बस यु ही बेकार हो जायेंगे| मुझे इसी बात का गम था लेकिन जब उस
लड़की के साथ हुए दरिंदगी भरे सलूक के बारे में सुना तो बस सर शर्म से निचे झुक गया
इतना की उठने में कई साल लगेंगे| इस खबर को सुनकर तो उस कानून के पुतले को भी शर्म
आ गयी होगी और कहा होगा की आच्छा हुआ जो मैंने अपने आँखों पे पट्टी बांध रखी है
वरना मै ये सब बर्दाश नहीं कर पाती|
आखिर वो नादानं कितनी बेवकूफ
थी जो हरदम यह सोचा करती थी की वो आजाद देश में रहती है जहाँ का संविधान लड़कों और
लडकियों दोनों को बराबर नज़रिए से देखता है, जहाँ वह भी आम लडको की ही तरह कहीं भी
आ जा सकती है, अपने पुरुष मित्र के साथ कहीं भी घूम सकती है और रात के १०:०० बजे
भी अगर बाहर रहे तो कोई भी कुछ भी कहने वाला नहीं है| आखिर उसे भी क्या पता था की
जिस शहर में बड़े से बड़े कानूनों को बनाया जाता है, जहाँ महिलाएं कानून और संविधान
की नुमाइंदो के तौर पर तैनात होकर देश की सुरक्षा को अपने हाथ में लिए हुए हैं,
उसी जगह पे उसके साथ ऐसी शर्मनाक वारदाते हों सकती हैं |
दिल्ली की सडको पर दौड़ती
बस के अंदर जो दरिंदगी हुई वो न सिर्फ एक शर्मनाक हरकत थी बल्कि कानून के साथ साथ
आम इंसानों की रूह को भी झ्ग्झोर देने वाली घटना थी जिसकी वजह से हर एक
हिन्दुस्तानी क्या पुरे देश में रहने वाले सभी इन्शानो को शर्म से गर्दन कटा देने का
मन कर किया होगा | आखिर कैसे कुछ चंद लफंगों ने पुरे के पुरे देश की कानून
व्यवस्था को हिला के रख दिया| हम पुरे साल भर बस यही गातें रहें की “हमारा देश तरकी
कर रहा है”, “हम लोग सभ्य लोग हैं”, “we are the social animal” लेकिन
साल के ख़त्म होते होते हमारे सारे दावें धराशाही हो गए और हमारे साथ साथ पूरी
दुनिया के सभी लोग यह जान गए होंगे की हम कितने सभ्य हैं, जहाँ लडकियों को लडको के
बराबर होने का दावा किया जाता है वही कुछ लोग एक लड़की को बस में डालकर सरेराह उसकी
इज्जत लुटते हैं और उसे मारने के बाद सड़क पे फेंक देंते हैं| क्या उन्हें पुलिस का
या फिर हमारे कानून का जरा सा भी डर नहीं हैं और......................| और तो और नेताओ
की टिपण्णी तो देखिये जब वो लड़की मर जाती हैं तो कुछ लोग उस घटना के विरोध में
प्रदर्शन कर रही लडकियों को कहते हैं की “लिपस्टिक लगा कर डिस्को जाने वाली ये
लडकिया यहाँ जमा हुई हैं” तो कुछ लोग ट्विटर पे लिखते हैं की “उस लड़की का नाम
क्यों नहीं बताया जा रहा हैं?” पता नहीं इन्हें उसका नाम जानने में इतनी दिलचस्पी
क्यों हैं|
सभी लोग इधर उधर की बाते कर
रहे है लेकिन किसी ने भी उसके घर वालो के बारे में नहीं सोचा होगा की आखिर वो कैसे
आपने आप को संभल रहे होंगे, कैसे जी रहे होंगे शायद वो भी यही चाह रहे होंगे की
काश ये धरती ख़त्म हो जाती तो उन्हें ऐसी शर्मनाक हकीकत का सामना नहीं करना पड़ता|