Wednesday, 24 April 2013

आखाड़ो की पेशवाई



                               

आखाडा............! अलग अलग छेत्रो के लोग,अलग भाषा और अलग वण लेकिन सभी के मन का भाव आस्था की ओर | इन सभी लोंगो के एक स्थान पे एकत्र होकर अपने धर्मं गुरु की शरण में रहकर कल्पवास करना और श्राद्धा भाव से भजन पूजन करना ही इनका मुख्य उद्देश्य है और मन की आस्था भीं | यही वजह है की ये सभी मिलकर एक आखाड़े का निर्माण करते है |  जब कुम्भ मेला लगता है तो सभी अपने आखाड़े में एकत्र हो जाते हैं और फिर शुरू होती हैं पेशवाई की आगाज, जो इनके स्थानीय आखाडा भवन से शुरू होकर कुम्भ मेले की रेत पर ही ख़त्म होती हैं | पेशवाई का मुख्य उद्देश है की यह आखाडा अपने सभी साधू संतो को लेकर संगम की नगरी में पहुँच रहा हैं जहाँ पर रहकर यह लोंगो के मन में भक्ति भावना का प्रचार प्रसार करेंगे | इस पेशवाई को देखने के लिए दूर दूर से लोग आते हैं | भारतीयों के अलावा विदेशों से भी लोग आकर इन साधू संतो की पेशवाई को देखते हैं | जब किसी भी आखाड़े की पेशवाई शहर की सड़कों से होते हुए गुजरती हैं तो लोग अपने-अपने घरों की छतों पे खड़े होकर साधू संतों के ऊपर फूलों की बारिश करते हैं और हर हर महादेव, जय हो गंगा मैया के उद्घोष से पुरे वातावरण को गुंजायमान करते रहते हैं | इसी के साथ ही सभी अपनी अपनी इच्छा अनुसार साधू संतो को रास्ते भर जल पान वितरित करते रहते हैं ताकि उन्हें भी इस शुभ कार्य में थोड़ी सी हिस्सेदारी मिल सकें |
                         इस पेशवाई में हजारो लोगो का हुजूम उमडा होता है जिनमे सबसे आगे पुलिस बल अपने घोड़ो के साथ चलते हैं फिर उनके पीछे हाथों में चांदी की छड़ी लिए हुए कुछ साधू चलते हैं इन साधुओ को आखाड़ो का कोतवाल कहा जाता हैं | ये कोतवाल ही हैं जो आखाड़ो की निगरानी करते हैं और पेशवाई के दौरान पेशवाई को सुचारू रूप से पुण‌‍‌॔ करवाते हैं | इनके पीछे अलग अलग झाकियां चलती रहती हैं जिनमे विभिन्न लीलाओ का मंचन होता रहता हैं | जिनमे प्रभु श्री कृष्णा की गोपियों के साथ नृत्य, श्री राम का चरित्रा और बाल हनुमान की लीलाओ का मंचन किया जाता हैं | इन झाँकियो के पीछे आखाड़े की गुरु जिनकी पूजा की जाती हैं उनकी सोने की मूर्ति एक रथ पे सवार होकर चलती रहती हैं और साथ ही आखाडा ध्वज भी एक अलग रथ पे विराजमान रहता हैं | यह आखाडा ध्वज उनके आखाड़े की निशानी होती है जिसपे उस आखाड़े का अपना कोई निशान बना होता हैं | यही निशान उनके आखाड़े को मेला छेत्रा में चिन्हित कराता हैं | फिर इनके पीछे उस आखाड़े के चारो महंतो का जत्था अपने अपने रथ पर चलता हैं | ये चारो महंत एक – एक दिशा से होता हैं अर्थात हर एक दिशा का एक महंत होता हैं, ताकि इनके आखाड़े की ख्याति चारो दिशाओ तक पहुँच सके | और फिर अंत में उनके पीछे उस आखाड़े के सभी छोटे बड़े साधू संत चलते रहते हैं | किसी किसी आखाड़े की पेशवाई इतनी लम्बी होती हैं की एक बार पेशवाई के शुरू से अंत में पहुँच जाने के बाद वापस शुरू में पहुँच पाना काफी मुश्किल होता हैं |
                     जब पेशवाई कुम्भ मेले में पहुँच जाती हैं तो मेले के बहरी छोर पर मेला प्रशासन अधिकारी उस आखाड़े के सभी महंतो को माला फूल पहना कर उनका स्वागत करता हैं और उन्हें मेला में निर्धारित उनके स्थान पे आदर के साथ पहुंचता हैं | इसके बाद मेला में बने उस आखाड़े के द्वार पर कोई एक साधू सरसों के तेल को द्वार के दोनों तरफ गिरता है और फिर वह पेशवाई उस मेला में बने आखाड़े में प्रवेश करती हैं | सरसों के तेल को गिराने के पीछे यह धारणा हैं की आप जिस शुभ कार्य को करने जा रहे हैं उसे किसी की भी नजर नहीं लगेगी | इसके बाद जब पेशवाई अंदर आ जाती हैं तब सबसे पहले रथ पे सवार आखाड़े के गुरुओ की मूर्ति को वहां बने पवित्र स्थान पे रख दिया जाता हैं और फिर शुरू होता हैं आरती का सिलसिला जो पुरे मोहोल को और भी भक्तिमय बना देता हैं | अंत में सभी को प्रशाद भेट कर पेशवाई सम्पूर्ण कराने की बधाई दी जाती हैं |