Sunday, 25 May 2014

हादसा... *******


हमारा मिलना 
हर बार एक हादसे में तब्दील हो जाता है 
हादसा
जिससे दूसरों का कुछ नहीं बिगड़ता 
सिर्फ हमारा-तुम्हारा बिगड़ता है  
क्योंकि 
ये हादसे हमारी ज़िन्दगी का हिस्सा हैं 
हमारे वजूद में शामिल 
दहकते शोलों की तरह 
जिनके जलने पर ही ज़िन्दगी चलती है  
अगर बुझ गए तो 
जीने का मज़ा चला जाएगा 
और बेमज़ा जीना तुम्हें भी तो पसंद नहीं 
फिर भी 
अब 
तुम्हें साथी कहने का मन नहीं होता  
क्योंकि 
इन हादसों में कई सारे वे क्षण भी आए थे 
जब अपने-अपने शब्द-वाण से
हम एक दूसरे की ह्त्या तक करने को आतुर थे 
अपनी ज़हरीली जिह्वा से  
एक दूसरे का दिल चीर देते थे  
हमारे दरम्यान कई क्षण ऐसे भी आए थे  
जब खुद को मिटा देने का मन किया था 
क्योंकि कई बार हमारा मिलना 
गहरे ज़ख़्म दे जाता था 
जिसका भरना कभी मुमकिन नहीं हुआ  
हम दुश्मन भी नहीं 
क्योंकि कई बार अपनी साँसों से 
एक दूसरे की ज़िन्दगी को बचाया है हमने 
अब हमारा अपनापा भी ख़त्म है 
क्योंकि मुझे इस बात से इंकार है कि 
हम प्रेम में है 
और तुम्हारा जबरन इसरार कि 
मैं मान लूँ     
''हम प्रेम में हैं और प्रेम में तो यह सब हो ही जाता है'' 
सच है 
हादसों के बिना  
हमारा मिलना मुमकिन नहीं
कुछ और हादसों की हिम्मत 
अब मुझमें नहीं 
अंततः 
पुख्ता फैसला चुपचाप किया है - 
''असंबद्धता ही मुनासिब है''   
अब न कोई जिरह होगी 
न कोई हादसा होगा !

Saturday, 3 May 2014

चालाकी जिंदाबाद


हिंदुस्तान चालाक लोगों का देश है। यहां लोग का मतलब जनता नहीं है। क्योंकि इस देश की जनता चालाक नहीं है। चालाक वे हैं जिनका इस देश पर कब्जा है। कब्जा कई तरह का है। इस देश की सत्ता पर नेताओं का कब्जा है। धन पर व्यापारियों का कब्जा है। कानून पर गुंडों का कब्जा है। देश उसीका होता है जिसका कब्जा होता है।
तो, सबसे पहले तो यह देश चालाक नेताओं का देश है। वे देश की समस्याएं हल करने का दावा तो करते हैं पर करते नहीं। बस उनसे अपनी गरदन बचा लेते हैं। चूंकि नेता अपनी गरदन बचाना जानते हैं, इसलिए गरदन किसी और की कटती है। चालाक नेता अपनी सफलता से बड़ा खुश होकर सोचता है कि गरदन कटी तो किसी और की कटी, अपनी तो बच गयी। लेकिन जो समस्या हल नहीं होती वह किसीकी गरदन नहीं छोड़ती, नेता की भी नहीं। तो क्या इस देश की समस्याएं हल हो ही नहीं सकती? जी नहीं, हर समस्या हल हो सकती है, बशर्ते कि ईमानदारी से की जाए। और, यही सबसे बड़ी मुश्किल है। क्योंकि यह तो चालाक लोगों का देश है। चालाकी और ईमानदारी अकसर एक साथ नहीं चलतीं।
यह देश चालाक व्यापारियों का देश है। पैसे के बदले में सेवा देना बेवकूफी है। सही तोलना, सही नापना, मिलावट न करना बेवकूफी है। हिंदुस्तान के व्यापारियों ने बेवकूफी करना नहीं सीखा। लेकिन चालाक लोग यह भूल जाते हैं कि बेईमानी एक वायरस है, एड्स से भी ज्यादा यानक। एड्स से केवल शरीर सड़ता है। बेईमानी पूरे समाज को सड़ा देती है। सड़े हुए समाज में कोई सुरक्षित नहीं रहता। व्यापारी तो बिलकुल नहीं।
गुंडे हर देश में होते हैं। लेकिन हमारे देश में तो वे महान हो गये हैं। वे एक हाथ से गुंडागिरी करते हैं और दूसरे से समाज सेवा। एक हाथ से गला काटते हैं और दूसरे से सिर सहलाते हैं। अब तो गुंडे नेता भी बन गये हैं। सोचने की बात यह है कि जो आज एमपी बन गया है, कल वह पीएम भी बन सकता है। जी हां, ऐसा बिलकुल हो सकता है। क्योंकि अगर देश अपने गुंडों को सजा नहीं दे सकता, तो यह तय मानिए कि एक दिन वह गुंडों को सत्ता भी सौंप देगा। जो कानून गुंडे की गरदन नहीं पकड़ता वह गुंडों के पांवों में पड़ा रहता है। जब देश पर गुंडे राज करेंगे तब कानून उनका हुक्म बजायेगा। देश में टैक्स कोई दे या न दे, हफ्ता सब देंगे।
गुंडे बेधड़क आपकी जेब काटेंगे और जेब में कुछ न निकलने पर भरे बाजार में आपकी बेइज्जती करेंगे। चोर मांग करेंगे कि घरों में ताला लगाने के खिलाफ कानून बनाया जाए। लूट को उद्योग का दर्जा दिया जाए। जो लुटने की शिकायत करने पुलिस में जाएगा, पुलिस वाले उसे इन्कम टैक्स वालों के हवाले कर देंगे− बता, तेरे पास इतना पैसा आया कहां से कि कोई तुझे लूटने आ गया?
चालाक लोग ती सफल होते हैं जब आम लोग मूर्ख बनने को तैयार हों। और, इस देश में जनता से बड़ा मूर्ख कोई नहीं है। उसने मान लिया है कि धोखा खाना, बेवकूफ बनना, लुटना उसकी मजबूरी है। लोग पिछले पचास साल से बेवकूफ बनते आये हैं, पर कुछ किया नहीं। अगले पचास साल भी बेवकूफ बनते रहेंगे और कुछ नहीं करेंगे। हाथ पर हाथ रख कर बैठे रहेंगे। अपनी जाति, अपनी जमात, अपने धर्म की खातिर मरने को तैयार रहेंगे, पर बेईमानी से लड़ने कोई आगे नहीं आएगा। जो समाज अपने अंदर के बेईमानों से नहीं लड़ता, वह दूसरों के बेईमानों को भी नहीं हरा सकता।
हिंदुस्तान एक विचित्र देश है। आये दिन यहां लोग बेईमानी का विरोध करते नजर आते हैं। लेकिन परेशानी यह है कि़ जो बेईमानी का विरोध करता है वह खुद भी तो ईमानदार नहीं होता। जी हां, हिंदुस्तान एक विचित्र देश है। यहां आजाद सब हो गये, जिम्मेदार कोई नहीं हुआ।

Sunday, 20 April 2014

...........पता नहीं !

...........पता नहीं !




अब तो केवल यादें हैं
उनके सिवा कुछ भी नहीं
वक़्त ने मुझको गुज़ारा
या मैंने वक़्त को -पता नहीं !

धुंधली सी परछाइयाँ
आ घेर लेतीं मुझको जब
धुंधली होतीं शामें तकता
सोचता क्या- पता नहीं !

कौनसी थी वह ख़ता
अनजाने में मुझसे हो गयी
छोड़कर सब चल दिए
क्यूँ जी रहा मैं  -पता नहीं !

वादा खिलाफी मैंने की
यह मान मैं सकता नहीं
कोशिशों में रह गयी
शायद कमी -पता नहीं !

अब तो अकेले रहने की
आदत है मुझको पड़ गयी
रौशनी कब मेरी थी
कब मेरी होगी -पता नहीं

दर्द और रिश्ता

प्रतिदिन दर्द और रिश्ताके अनुभवसे हम गुजरते हैं लेकिन दर्द इए रिश्ता को समझनें की कोशिश हम नहीं करते । की समाधिमें पहुँच कर प्रभु ही बन जाता है । रिश्ते में जो दर्द उठता है वह दो प्रकारका होताहै ; एक वह दर्द जो जुदाईके कारण उठता है और दूसरा दर्द कृतिम दर्द होता है जो बुद्धि - अहंकारके सहयोगसे उठता है । जुदाई का दर्द प्राकृतिक दर्द होता है जिसके तार हृदय से जुड़े होते हैं लेकिन कृतिम दर्द बुद्धि एवं अहंकार की उपज है ।प्राकृतिक दर्द हृदय का दर्द है और कृतिम दर्द अहंकारकी उपज है । अहंकारका दर्द नर्क में पहुंचता है और प्राकृतिक दर्दमें परमकी खुशबू मिलती रहती है ।
दर्दमें रिश्ते और रिश्तेमें दर्द दोनों का अनुभव एक दुसरे से थीक उल्टा होता है , दर्द में रिश्तेकी तलाशमें मन होता है और रिश्ते में दर्दका अनुभव वैराग्य की ओर चलता है । दर्दसे रिश्ता है ? या रिश्तेसे दर्द है ? बहुत कठिन है इस समीकरणको समझना । दर्दमें जो रिश्ता बनता है वह परम रिश्ता होता है जैसे माँ और औलादका रिश्ता जो प्रसव पीड़ासे सम्बंधित रिश्ता है लेकिन अब यह रिश्ता भी कमजोर होता दिख रहा है क्योंकि अब शिशुका जन्म बिना प्रसव पीड़ा संभव  है । भक्त और भगवानके मध्य दर्दका रिश्ता है जहां भक्त रोता - रोता नाचनें भी लगता है जैसे मीरा और परमहंस श्री परमहंस जी । भक्तिमें उठी दर्द जब भक्तके हृदयको पिघलाती है तब उसके तरल हृदयमें भगवान दिखता है और तब उसका सम्बन्ध संसारसे टूट जाता है और वह शुद्ध परा भक्ति

Friday, 17 May 2013

यह खेल रौशनी का........





                           आप ने किस्से कहानिया तो जरुर सुनी होंगी जिसमे बुराई पर अछाई की जीत होती हैं जहाँ अंधकार, बुराई का और दुःख का प्रतीक हैं वहीँ अछाई, रौशनी का और आस्था का प्रतीक हैं | आप को कैसा लगेगा जब आप एक ऐसी जहग पहुँच जाये जहाँ पर अँधेरा ही ना हो चाहे दिन हो या फिर रात और हर तरफ ढेरो आदमियों का काफिला आस्था में डूबा हुआ ही दिखाई दें | हर तरफ रौशनी ही रौशनी हो जहाँ रेत पर एक सुई भी खोजने में खासा दिक्कत ना हो | जहाँ दिन में सूर्य की रौशनी प्रकाश की ज्योत जलाती हैं वहीँ रात में बिजली विभाग की तरफ से लगाये गए बिजली के खम्भे | लोगो का मानना है की ऐसी जगह केवल सपनो में हो सकती है या फिर ध्रुवीय प्रदेशो में जहाँ वर्ष के छ: महीने तक सूर्य निकला रहता हैं, जी नहीं ! इलाहाबाद नगरी को भी यह मौका मिलता हैं जब कुम्भ मेला लगता हैं | इस बार इलाहाबाद में लगे कुम्भ मेले में बिजली विभाग ने सबसे उम्दा काम किया था | विभाग ने ११ करोड़ रुपये खर्च करके मेले में आये सभी लोंगो को रौशनी प्रदान कर उनके आस्था को और भी मजबूत कर दिया | जिसकी वजह से दिन हो या फिर रात लोग अपना काम बिना रुके कर रहे थें | रौशनी की ही वजह से आखाड़ो में पूजन करने वाले साधू सन्यासियों को किसी भी प्रकार की दुविधा उत्पन्न नहीं हुयी | महाकुम्भ मेले में लगे हुए बीस हज़ार खम्भे पुरे के पुरे मेला क्षेत्र को एक अविस्मरनीय रोशिनी से जगमगा रहे थें, जिसे देख ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो जैसे स्वयं देवलोक ज़मी पे उतर आया हो और अभी माँ गंगा, जमुना और सरस्वती तीनो उठ खड़ी होंगी अपने बच्चों को आशीर्वाद देने के लिए | यही वो रौशनी थी जो आस्था की हर एक किरण को खुद में पिरोकर लोंगो तक पहुंचा रहीं थीं | जिस किसी की भी नज़र इस रौशनी की तरफ गई वो मनो थम सा गया हो और उसकी निगाहे बस यहीं कह रहीं हो की बस आज देख लेने दो.......... जी भर के | क्या पता कल ऐसी रौशनी का अलोकिक नज़ारा देखने को मिले या न मिले |  कुम्भ मेले में फैली चारो ओर रौशनी की जगमगाहट ने सभी को अपनी तरफ आकर्षित कर लिया | हर कोई इस जगमगाहट भरी रौशनी में खुद की परछाई को देखने की इच्छा लिए चला आ रहा था..........बस चला आ रहा था |  इस जगमगाहट की रौशनी इतनी थी की नासा के वैज्ञानिक भी खुद को रोक नहीं पाए और मोड़ दिया सैटैलाइट को इलाहाबाद की ओर | जिसने भी इस रौशनी को देखा वो इस रौशनी का कायल हो गया |

ध्वजा पूजन



 



              “ध्वज” किसी भी समूह या समुदाय का प्रतीक होता है | इसके साथ ही मान्यता हैं की ध्वजा में भगवान् बजरंगबली का वास होता हैं जो की उस उद्देश्य की पूर्ति करते हैं जिसके लिए उस ध्वज को रोहित किया गया हैं | इसी लिए तो महाभारत के युद्ध में भी अर्जुन के रथ पर ध्वज को लगाया गया था जिसकी वजह से उन्हें अपने उद्देश्य में पूर्ण रूप से सफलता हासिल हुई |

जब पेशवाई के बाद कोई भी आखाडा संगम नगरी में प्रवेश करता हैं तो प्रवेश के दुसरे ही दिन अपने और अपने सभी भक्तों की मनोकामना की पूर्ति हेतु ध्वजा रोहन किया जाता हैं | इस ध्वजा रोहन की शुरुवात भूमि पूजन के साथ ही शुरू होता हैं |  भमि पूजन का मुख्य उद्देश्य, उस भूमि का शुक्रिया करना जिस भूमि पे रहकर इस आस्था के कार्य को संपूर्ण करना हैं | इसके बाद शुरू होता हैं मंत्रोचारण का अदभूद नजारा, जिसमे कई सारे साधू संत एक साथ मन्त्रों का उच्चारण करते हैं और पुरे वातावरण को अपने मंत्रोचारण से गुजायामन कर देते हैं | करीब एक घंटे तक चले इस पूजन के पश्चात् सभी साधू संत ध्वज की लकड़ी को लाकर जमींन से ऊपर उठाकर हाथों या मेजों पे लिटा कर रख देतें हैं | फिर इसके बाद शुरू होता हैं लकड़ी पूजन जिसमे ध्वज की लकड़ी को पंचामृत से सभी लोंगो द्वारा स्नान कराया जाता हैं | फिर इसके ऊपर एक लाल रंग के कपडे को लपेटा जाता हैं और लकड़ी के सिरे पर ध्वज को लगाकर उसके ऊपर मयूर पंख को शोभित किया जाता हैं जो की देखने में अत्यंत शोब्नीय लगता हैं | फिर इसके बाद सभी लोग एक समन्वय में कार्य करते हुए ध्वज को आकाश की ओर ऊठाते हैं | जब ध्वज पूरी तरह से ऊठ जाता हैं तो फिर इसके बाद सभी आखाड़े के साधू संत एक जुट होकर अपने गुरु की पूजा करते हैं जिनकी मूर्ति को आखाड़े में विराजित किया गया हैं | इस पूजा में सभी तरफ ढोल मंजीरे की आवाज साथ ही मन्त्रों के उच्चारण आपको एक पल के किये उस खुदा से आपको जोड़ देते हैं जिसने इस संसार को बनाया हैं | इसके बाद सभी भक्तों में प्रसाद का वितरण किया जाता हैं | और सच में वो प्रसाद, प्रसाद नहीं अमृत होता हैं जिसे खाकर आत्मा तृप्त हो जाती हैं | भक्तों में प्रसाद वितरण के साथ ही ध्वजा पूजन संपन्न होता हैं और फिर शुरू हो जाती हैं आस्था के संगम में दुबकी लगाने की होड़ ........................|

 

एक शहर आस्था का


 


                 “आस्था” कहने के लिए कितना छोटा सा शब्द , लेकिन इसी एक छोटे से शब्द में पूरा का पूरा संसार छुपा हुआ हैं | इस छोटे से शब्द में इतनी शक्ति है जो किसी भी इन्सान के सभी कष्टों को मिटा देता हैं इसकी ताकत से सभी इसके द्वार पर खिचे चले आते हैं | इस शब्द में इतनी शक्ति हैं की रातों रात एक अलग शहर संगम नगरी में बसा देता हैं | शायद इतनी शक्ति हमारे सुपर कंप्यूटर में भी न हो क्योकि उसमे भी हमें कुछ करने के लिए अपना देमाग लगाना पड़ता है लेकिन इसमें तो सब बस अपने मन से ही खिचे चले आते हैं | इस आस्था के शहर में सब अपने आपको उस सर्वशक्तिमान के हवाले कर देते हैं की अब बस वो ही उनकी जिंदगी का फैसला करे और उन्हें सही रास्तें दिखाए |  इस आस्था के शहर में सभी एक बराबर होतें हैं ना कोई छोटा और ना ही कोई बड़ा | और सबसे बड़ी बात की इस आस्था के शहर में कोई भी भूखा नहीं सोता भले ही वो गरीब हो, उसके पास पैसे ना हों लेकिन उसे दोनों समय खाना जरुर मिलेगा | उन गरीबों के लिए रहने, सोने और साथ ही साथ मेडिकल की भी व्यवस्था बिना कोई भी पैसा लिए की जाती हैं | इस आस्था शब्द में इतनी ताकत है की यह कई लोंगो को अपना पेट पलने के लिए इस शहर में रोजगार भी उपलब्ध करता हैं | इस शब्द की बात ही निराली हैं पहले जहाँ रेत ही रेत थी वंहा एक ऐसी नगरी बसा दी जिसे देखकर लोग दांतों तले अपनी उंगलिया दबा ले | एक ऐसी नगरी जिसकी रौशनी को अंतरिछ से भी देखा जा सके, जहाँ कभी भी लाइट नहीं कटती, जहाँ चोरी नहीं होंती, जहाँ सभी भक्ति भावना में लिप्त होकर प्रभु को याद करते रहतें हैं, जहाँ चारों तरफ एक ऐसी शांति जो आपको सुख प्रदान करें | ऐसे शहर की कल्पना भी कर पाना मुश्किल हैं लेकिन “आस्था” जैसे एक शब्द ने ऐसा करिश्मा कर दिखाया हैं जो की अदभुद और हैरतंगेज हैं |