
“ध्वज” किसी भी
समूह या समुदाय का प्रतीक होता है | इसके साथ ही मान्यता हैं की ध्वजा में भगवान्
बजरंगबली का वास होता हैं जो की उस उद्देश्य की पूर्ति करते हैं जिसके लिए उस ध्वज
को रोहित किया गया हैं | इसी लिए तो महाभारत के युद्ध में भी अर्जुन के रथ पर ध्वज
को लगाया गया था जिसकी वजह से उन्हें अपने उद्देश्य में पूर्ण रूप से सफलता हासिल
हुई |
जब पेशवाई के बाद कोई भी आखाडा संगम नगरी में प्रवेश करता हैं तो
प्रवेश के दुसरे ही दिन अपने और अपने सभी भक्तों की मनोकामना की पूर्ति हेतु ध्वजा
रोहन किया जाता हैं | इस ध्वजा रोहन की शुरुवात भूमि पूजन के साथ ही शुरू होता हैं
| भमि पूजन का मुख्य उद्देश्य, उस भूमि का
शुक्रिया करना जिस भूमि पे रहकर इस आस्था के कार्य को संपूर्ण करना हैं | इसके बाद
शुरू होता हैं मंत्रोचारण का अदभूद नजारा, जिसमे कई सारे साधू संत एक साथ मन्त्रों
का उच्चारण करते हैं और पुरे वातावरण को अपने मंत्रोचारण से गुजायामन कर देते हैं
| करीब एक घंटे तक चले इस पूजन के पश्चात् सभी साधू संत ध्वज की लकड़ी को लाकर
जमींन से ऊपर उठाकर हाथों या मेजों पे लिटा कर रख देतें हैं | फिर इसके बाद शुरू
होता हैं लकड़ी पूजन जिसमे ध्वज की लकड़ी को पंचामृत से सभी लोंगो द्वारा स्नान
कराया जाता हैं | फिर इसके ऊपर एक लाल रंग के कपडे को लपेटा जाता हैं और लकड़ी के
सिरे पर ध्वज को लगाकर उसके ऊपर मयूर पंख को शोभित किया जाता हैं जो की देखने में
अत्यंत शोब्नीय लगता हैं | फिर इसके बाद सभी लोग एक समन्वय में कार्य करते हुए
ध्वज को आकाश की ओर ऊठाते हैं | जब ध्वज पूरी तरह से ऊठ जाता हैं तो फिर इसके बाद
सभी आखाड़े के साधू संत एक जुट होकर अपने गुरु की पूजा करते हैं जिनकी मूर्ति को
आखाड़े में विराजित किया गया हैं | इस पूजा में सभी तरफ ढोल मंजीरे की आवाज साथ ही
मन्त्रों के उच्चारण आपको एक पल के किये उस खुदा से आपको जोड़ देते हैं जिसने इस
संसार को बनाया हैं | इसके बाद सभी भक्तों में प्रसाद का वितरण किया जाता हैं | और
सच में वो प्रसाद, प्रसाद नहीं अमृत होता हैं जिसे खाकर आत्मा तृप्त हो जाती हैं |
भक्तों में प्रसाद वितरण के साथ ही ध्वजा पूजन संपन्न होता हैं और फिर शुरू हो
जाती हैं आस्था के संगम में दुबकी लगाने की होड़ ........................|
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