Friday, 17 May 2013

यह खेल रौशनी का........





                           आप ने किस्से कहानिया तो जरुर सुनी होंगी जिसमे बुराई पर अछाई की जीत होती हैं जहाँ अंधकार, बुराई का और दुःख का प्रतीक हैं वहीँ अछाई, रौशनी का और आस्था का प्रतीक हैं | आप को कैसा लगेगा जब आप एक ऐसी जहग पहुँच जाये जहाँ पर अँधेरा ही ना हो चाहे दिन हो या फिर रात और हर तरफ ढेरो आदमियों का काफिला आस्था में डूबा हुआ ही दिखाई दें | हर तरफ रौशनी ही रौशनी हो जहाँ रेत पर एक सुई भी खोजने में खासा दिक्कत ना हो | जहाँ दिन में सूर्य की रौशनी प्रकाश की ज्योत जलाती हैं वहीँ रात में बिजली विभाग की तरफ से लगाये गए बिजली के खम्भे | लोगो का मानना है की ऐसी जगह केवल सपनो में हो सकती है या फिर ध्रुवीय प्रदेशो में जहाँ वर्ष के छ: महीने तक सूर्य निकला रहता हैं, जी नहीं ! इलाहाबाद नगरी को भी यह मौका मिलता हैं जब कुम्भ मेला लगता हैं | इस बार इलाहाबाद में लगे कुम्भ मेले में बिजली विभाग ने सबसे उम्दा काम किया था | विभाग ने ११ करोड़ रुपये खर्च करके मेले में आये सभी लोंगो को रौशनी प्रदान कर उनके आस्था को और भी मजबूत कर दिया | जिसकी वजह से दिन हो या फिर रात लोग अपना काम बिना रुके कर रहे थें | रौशनी की ही वजह से आखाड़ो में पूजन करने वाले साधू सन्यासियों को किसी भी प्रकार की दुविधा उत्पन्न नहीं हुयी | महाकुम्भ मेले में लगे हुए बीस हज़ार खम्भे पुरे के पुरे मेला क्षेत्र को एक अविस्मरनीय रोशिनी से जगमगा रहे थें, जिसे देख ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो जैसे स्वयं देवलोक ज़मी पे उतर आया हो और अभी माँ गंगा, जमुना और सरस्वती तीनो उठ खड़ी होंगी अपने बच्चों को आशीर्वाद देने के लिए | यही वो रौशनी थी जो आस्था की हर एक किरण को खुद में पिरोकर लोंगो तक पहुंचा रहीं थीं | जिस किसी की भी नज़र इस रौशनी की तरफ गई वो मनो थम सा गया हो और उसकी निगाहे बस यहीं कह रहीं हो की बस आज देख लेने दो.......... जी भर के | क्या पता कल ऐसी रौशनी का अलोकिक नज़ारा देखने को मिले या न मिले |  कुम्भ मेले में फैली चारो ओर रौशनी की जगमगाहट ने सभी को अपनी तरफ आकर्षित कर लिया | हर कोई इस जगमगाहट भरी रौशनी में खुद की परछाई को देखने की इच्छा लिए चला आ रहा था..........बस चला आ रहा था |  इस जगमगाहट की रौशनी इतनी थी की नासा के वैज्ञानिक भी खुद को रोक नहीं पाए और मोड़ दिया सैटैलाइट को इलाहाबाद की ओर | जिसने भी इस रौशनी को देखा वो इस रौशनी का कायल हो गया |

ध्वजा पूजन



 



              “ध्वज” किसी भी समूह या समुदाय का प्रतीक होता है | इसके साथ ही मान्यता हैं की ध्वजा में भगवान् बजरंगबली का वास होता हैं जो की उस उद्देश्य की पूर्ति करते हैं जिसके लिए उस ध्वज को रोहित किया गया हैं | इसी लिए तो महाभारत के युद्ध में भी अर्जुन के रथ पर ध्वज को लगाया गया था जिसकी वजह से उन्हें अपने उद्देश्य में पूर्ण रूप से सफलता हासिल हुई |

जब पेशवाई के बाद कोई भी आखाडा संगम नगरी में प्रवेश करता हैं तो प्रवेश के दुसरे ही दिन अपने और अपने सभी भक्तों की मनोकामना की पूर्ति हेतु ध्वजा रोहन किया जाता हैं | इस ध्वजा रोहन की शुरुवात भूमि पूजन के साथ ही शुरू होता हैं |  भमि पूजन का मुख्य उद्देश्य, उस भूमि का शुक्रिया करना जिस भूमि पे रहकर इस आस्था के कार्य को संपूर्ण करना हैं | इसके बाद शुरू होता हैं मंत्रोचारण का अदभूद नजारा, जिसमे कई सारे साधू संत एक साथ मन्त्रों का उच्चारण करते हैं और पुरे वातावरण को अपने मंत्रोचारण से गुजायामन कर देते हैं | करीब एक घंटे तक चले इस पूजन के पश्चात् सभी साधू संत ध्वज की लकड़ी को लाकर जमींन से ऊपर उठाकर हाथों या मेजों पे लिटा कर रख देतें हैं | फिर इसके बाद शुरू होता हैं लकड़ी पूजन जिसमे ध्वज की लकड़ी को पंचामृत से सभी लोंगो द्वारा स्नान कराया जाता हैं | फिर इसके ऊपर एक लाल रंग के कपडे को लपेटा जाता हैं और लकड़ी के सिरे पर ध्वज को लगाकर उसके ऊपर मयूर पंख को शोभित किया जाता हैं जो की देखने में अत्यंत शोब्नीय लगता हैं | फिर इसके बाद सभी लोग एक समन्वय में कार्य करते हुए ध्वज को आकाश की ओर ऊठाते हैं | जब ध्वज पूरी तरह से ऊठ जाता हैं तो फिर इसके बाद सभी आखाड़े के साधू संत एक जुट होकर अपने गुरु की पूजा करते हैं जिनकी मूर्ति को आखाड़े में विराजित किया गया हैं | इस पूजा में सभी तरफ ढोल मंजीरे की आवाज साथ ही मन्त्रों के उच्चारण आपको एक पल के किये उस खुदा से आपको जोड़ देते हैं जिसने इस संसार को बनाया हैं | इसके बाद सभी भक्तों में प्रसाद का वितरण किया जाता हैं | और सच में वो प्रसाद, प्रसाद नहीं अमृत होता हैं जिसे खाकर आत्मा तृप्त हो जाती हैं | भक्तों में प्रसाद वितरण के साथ ही ध्वजा पूजन संपन्न होता हैं और फिर शुरू हो जाती हैं आस्था के संगम में दुबकी लगाने की होड़ ........................|

 

एक शहर आस्था का


 


                 “आस्था” कहने के लिए कितना छोटा सा शब्द , लेकिन इसी एक छोटे से शब्द में पूरा का पूरा संसार छुपा हुआ हैं | इस छोटे से शब्द में इतनी शक्ति है जो किसी भी इन्सान के सभी कष्टों को मिटा देता हैं इसकी ताकत से सभी इसके द्वार पर खिचे चले आते हैं | इस शब्द में इतनी शक्ति हैं की रातों रात एक अलग शहर संगम नगरी में बसा देता हैं | शायद इतनी शक्ति हमारे सुपर कंप्यूटर में भी न हो क्योकि उसमे भी हमें कुछ करने के लिए अपना देमाग लगाना पड़ता है लेकिन इसमें तो सब बस अपने मन से ही खिचे चले आते हैं | इस आस्था के शहर में सब अपने आपको उस सर्वशक्तिमान के हवाले कर देते हैं की अब बस वो ही उनकी जिंदगी का फैसला करे और उन्हें सही रास्तें दिखाए |  इस आस्था के शहर में सभी एक बराबर होतें हैं ना कोई छोटा और ना ही कोई बड़ा | और सबसे बड़ी बात की इस आस्था के शहर में कोई भी भूखा नहीं सोता भले ही वो गरीब हो, उसके पास पैसे ना हों लेकिन उसे दोनों समय खाना जरुर मिलेगा | उन गरीबों के लिए रहने, सोने और साथ ही साथ मेडिकल की भी व्यवस्था बिना कोई भी पैसा लिए की जाती हैं | इस आस्था शब्द में इतनी ताकत है की यह कई लोंगो को अपना पेट पलने के लिए इस शहर में रोजगार भी उपलब्ध करता हैं | इस शब्द की बात ही निराली हैं पहले जहाँ रेत ही रेत थी वंहा एक ऐसी नगरी बसा दी जिसे देखकर लोग दांतों तले अपनी उंगलिया दबा ले | एक ऐसी नगरी जिसकी रौशनी को अंतरिछ से भी देखा जा सके, जहाँ कभी भी लाइट नहीं कटती, जहाँ चोरी नहीं होंती, जहाँ सभी भक्ति भावना में लिप्त होकर प्रभु को याद करते रहतें हैं, जहाँ चारों तरफ एक ऐसी शांति जो आपको सुख प्रदान करें | ऐसे शहर की कल्पना भी कर पाना मुश्किल हैं लेकिन “आस्था” जैसे एक शब्द ने ऐसा करिश्मा कर दिखाया हैं जो की अदभुद और हैरतंगेज हैं |

Wednesday, 24 April 2013

आखाड़ो की पेशवाई



                               

आखाडा............! अलग अलग छेत्रो के लोग,अलग भाषा और अलग वण लेकिन सभी के मन का भाव आस्था की ओर | इन सभी लोंगो के एक स्थान पे एकत्र होकर अपने धर्मं गुरु की शरण में रहकर कल्पवास करना और श्राद्धा भाव से भजन पूजन करना ही इनका मुख्य उद्देश्य है और मन की आस्था भीं | यही वजह है की ये सभी मिलकर एक आखाड़े का निर्माण करते है |  जब कुम्भ मेला लगता है तो सभी अपने आखाड़े में एकत्र हो जाते हैं और फिर शुरू होती हैं पेशवाई की आगाज, जो इनके स्थानीय आखाडा भवन से शुरू होकर कुम्भ मेले की रेत पर ही ख़त्म होती हैं | पेशवाई का मुख्य उद्देश है की यह आखाडा अपने सभी साधू संतो को लेकर संगम की नगरी में पहुँच रहा हैं जहाँ पर रहकर यह लोंगो के मन में भक्ति भावना का प्रचार प्रसार करेंगे | इस पेशवाई को देखने के लिए दूर दूर से लोग आते हैं | भारतीयों के अलावा विदेशों से भी लोग आकर इन साधू संतो की पेशवाई को देखते हैं | जब किसी भी आखाड़े की पेशवाई शहर की सड़कों से होते हुए गुजरती हैं तो लोग अपने-अपने घरों की छतों पे खड़े होकर साधू संतों के ऊपर फूलों की बारिश करते हैं और हर हर महादेव, जय हो गंगा मैया के उद्घोष से पुरे वातावरण को गुंजायमान करते रहते हैं | इसी के साथ ही सभी अपनी अपनी इच्छा अनुसार साधू संतो को रास्ते भर जल पान वितरित करते रहते हैं ताकि उन्हें भी इस शुभ कार्य में थोड़ी सी हिस्सेदारी मिल सकें |
                         इस पेशवाई में हजारो लोगो का हुजूम उमडा होता है जिनमे सबसे आगे पुलिस बल अपने घोड़ो के साथ चलते हैं फिर उनके पीछे हाथों में चांदी की छड़ी लिए हुए कुछ साधू चलते हैं इन साधुओ को आखाड़ो का कोतवाल कहा जाता हैं | ये कोतवाल ही हैं जो आखाड़ो की निगरानी करते हैं और पेशवाई के दौरान पेशवाई को सुचारू रूप से पुण‌‍‌॔ करवाते हैं | इनके पीछे अलग अलग झाकियां चलती रहती हैं जिनमे विभिन्न लीलाओ का मंचन होता रहता हैं | जिनमे प्रभु श्री कृष्णा की गोपियों के साथ नृत्य, श्री राम का चरित्रा और बाल हनुमान की लीलाओ का मंचन किया जाता हैं | इन झाँकियो के पीछे आखाड़े की गुरु जिनकी पूजा की जाती हैं उनकी सोने की मूर्ति एक रथ पे सवार होकर चलती रहती हैं और साथ ही आखाडा ध्वज भी एक अलग रथ पे विराजमान रहता हैं | यह आखाडा ध्वज उनके आखाड़े की निशानी होती है जिसपे उस आखाड़े का अपना कोई निशान बना होता हैं | यही निशान उनके आखाड़े को मेला छेत्रा में चिन्हित कराता हैं | फिर इनके पीछे उस आखाड़े के चारो महंतो का जत्था अपने अपने रथ पर चलता हैं | ये चारो महंत एक – एक दिशा से होता हैं अर्थात हर एक दिशा का एक महंत होता हैं, ताकि इनके आखाड़े की ख्याति चारो दिशाओ तक पहुँच सके | और फिर अंत में उनके पीछे उस आखाड़े के सभी छोटे बड़े साधू संत चलते रहते हैं | किसी किसी आखाड़े की पेशवाई इतनी लम्बी होती हैं की एक बार पेशवाई के शुरू से अंत में पहुँच जाने के बाद वापस शुरू में पहुँच पाना काफी मुश्किल होता हैं |
                     जब पेशवाई कुम्भ मेले में पहुँच जाती हैं तो मेले के बहरी छोर पर मेला प्रशासन अधिकारी उस आखाड़े के सभी महंतो को माला फूल पहना कर उनका स्वागत करता हैं और उन्हें मेला में निर्धारित उनके स्थान पे आदर के साथ पहुंचता हैं | इसके बाद मेला में बने उस आखाड़े के द्वार पर कोई एक साधू सरसों के तेल को द्वार के दोनों तरफ गिरता है और फिर वह पेशवाई उस मेला में बने आखाड़े में प्रवेश करती हैं | सरसों के तेल को गिराने के पीछे यह धारणा हैं की आप जिस शुभ कार्य को करने जा रहे हैं उसे किसी की भी नजर नहीं लगेगी | इसके बाद जब पेशवाई अंदर आ जाती हैं तब सबसे पहले रथ पे सवार आखाड़े के गुरुओ की मूर्ति को वहां बने पवित्र स्थान पे रख दिया जाता हैं और फिर शुरू होता हैं आरती का सिलसिला जो पुरे मोहोल को और भी भक्तिमय बना देता हैं | अंत में सभी को प्रशाद भेट कर पेशवाई सम्पूर्ण कराने की बधाई दी जाती हैं |

Sunday, 10 March 2013

काश ये धरती ख़त्म हो जाती


                      


                   माया कैलेंडर के मुताबिक ये धरती वर्ष २०१२ दिसम्बर को ख़त्म हो जाएगी| जब यह खबर मेरे कानो तक पड़ी तो मेरे पैरो के निचे से मानो जमींन ही खिसक हो, मुझे ऐसा लगा की ये भी कोई समय है धरती के ख़त्म होने का मैंने तो अभी ठीक तरह से दुनिया भी नहीं देखा और दुनिया के ख़त्म होने की बात भी आ गई| कितने सपने संजोये थे, मैंने क्या सब बस यु ही बेकार हो जायेंगे| मुझे इसी बात का गम था लेकिन जब उस लड़की के साथ हुए दरिंदगी भरे सलूक के बारे में सुना तो बस सर शर्म से निचे झुक गया इतना की उठने में कई साल लगेंगे| इस खबर को सुनकर तो उस कानून के पुतले को भी शर्म आ गयी होगी और कहा होगा की आच्छा हुआ जो मैंने अपने आँखों पे पट्टी बांध रखी है वरना मै ये सब बर्दाश नहीं कर पाती|
                    आखिर वो नादानं कितनी बेवकूफ थी जो हरदम यह सोचा करती थी की वो आजाद देश में रहती है जहाँ का संविधान लड़कों और लडकियों दोनों को बराबर नज़रिए से देखता है, जहाँ वह भी आम लडको की ही तरह कहीं भी आ जा सकती है, अपने पुरुष मित्र के साथ कहीं भी घूम सकती है और रात के १०:०० बजे भी अगर बाहर रहे तो कोई भी कुछ भी कहने वाला नहीं है| आखिर उसे भी क्या पता था की जिस शहर में बड़े से बड़े कानूनों को बनाया जाता है, जहाँ महिलाएं कानून और संविधान की नुमाइंदो के तौर पर तैनात होकर देश की सुरक्षा को अपने हाथ में लिए हुए हैं, उसी जगह पे उसके साथ ऐसी शर्मनाक वारदाते हों सकती हैं |
                       दिल्ली की सडको पर दौड़ती बस के अंदर जो दरिंदगी हुई वो न सिर्फ एक शर्मनाक हरकत थी बल्कि कानून के साथ साथ आम इंसानों की रूह को भी झ्ग्झोर देने वाली घटना थी जिसकी वजह से हर एक हिन्दुस्तानी क्या पुरे देश में रहने वाले सभी इन्शानो को शर्म से गर्दन कटा देने का मन कर किया होगा | आखिर कैसे कुछ चंद लफंगों ने पुरे के पुरे देश की कानून व्यवस्था को हिला के रख दिया| हम पुरे साल भर बस यही गातें रहें की “हमारा देश तरकी कर रहा है”, “हम लोग सभ्य लोग हैं”, “we are the social animal  लेकिन साल के ख़त्म होते होते हमारे सारे दावें धराशाही हो गए और हमारे साथ साथ पूरी दुनिया के सभी लोग यह जान गए होंगे की हम कितने सभ्य हैं, जहाँ लडकियों को लडको के बराबर होने का दावा किया जाता है वही कुछ लोग एक लड़की को बस में डालकर सरेराह उसकी इज्जत लुटते हैं और उसे मारने के बाद सड़क पे फेंक देंते हैं| क्या उन्हें पुलिस का या फिर हमारे कानून का जरा सा भी डर नहीं हैं और......................| और तो और नेताओ की टिपण्णी तो देखिये जब वो लड़की मर जाती हैं तो कुछ लोग उस घटना के विरोध में प्रदर्शन कर रही लडकियों को कहते हैं की “लिपस्टिक लगा कर डिस्को जाने वाली ये लडकिया यहाँ जमा हुई हैं” तो कुछ लोग ट्विटर पे लिखते हैं की “उस लड़की का नाम क्यों नहीं बताया जा रहा हैं?” पता नहीं इन्हें उसका नाम जानने में इतनी दिलचस्पी क्यों हैं|
                    सभी लोग इधर उधर की बाते कर रहे है लेकिन किसी ने भी उसके घर वालो के बारे में नहीं सोचा होगा की आखिर वो कैसे आपने आप को संभल रहे होंगे, कैसे जी रहे होंगे शायद वो भी यही चाह रहे होंगे की काश ये धरती ख़त्म हो जाती तो उन्हें ऐसी शर्मनाक हकीकत का सामना नहीं करना पड़ता|